जीवन बीमा पॉलिसी खरीदने का एकमात्र मकसद आर्थिक सुरक्षा है। इसके लिए पॉलिसीहोल्डर प्रीमियम का पेमेंट करता है।
वह उम्मीद करता है कि किसी अनहोनी की स्थिति में जीवन बीमा कंपनी नॉमिनी को बीमा का पैसा देगी, जिससे उसके बीवी और बच्चों को आर्थिक दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा। कई लोग तो इसीलिए करोड़ों रुपये कवर वाली पॉलिसी लेते हैं।
लेकिन, किसी अनहोनी की स्थिति में बीमा कंपनी के क्लेम रिजेक्ट करने पर परिवार की मुसीबतें बढ़ जाती हैं।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि बीमा कंपनियां ग्राहक को पॉलिसी बेचने में जितनी दिलचस्पी दिखाती है, उतनी क्लेम के एप्रूवल में नहीं दिखातीं। कई बार क्लेम में बेवजह की देर होती है।
कई बार बीमा कंपनियां क्लेम रिजेक्ट कर देती है। ज्यादातर वे इसके लिए तथ्यों को छुपाने जैसी वजहें बताती हैं।
उनका कहना होता है कि पॉलिसीहोल्डर ने पॉलिसी खरीदते वक्त तथ्यों के बारे में बीमा कंपनी को नहीं बताया था। पॉलिसीहोल्डर के नहीं रहने पर परिवार के सदस्यों के लिए इस आरोप का जवाब देना मुश्किल होता है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर आप जीवन बीमा पॉलिसी खरीद रहे हैं तो आपको कंपनी को अपनी पूरी मेडिकल हिस्ट्री बतानी चाहिए।
अगर कोई बीमारी है या पॉलिसीहोल्डर सिगरेट या शराब पीता है तो इसकी जानकारी बीमा कंपनी को देने से वह प्रीमियम थोड़ा बढ़ सकती है।
लेकिन, तब वह क्लेम को रिजेक्ट नहीं कर पाएगी। कई लोग पॉलिसी खरीदने के प्रोसेस को गंभीरता से नहीं लेते हैं।
इसकी वजह बीमा कंपनियों की पॉलिसी बेचने में जल्दबाजी होती है। लेकिन, इस जल्दबाजी से कंपनी को नहीं बल्कि पॉलिसीहोल्डर को नुकसान उठाना पड़ता है।