Shraddha : जींद के उचाना में महाराजा अग्रसेन मंदिर पुजारी अशोक शर्मा ने कहा कि पितृ पक्ष की शुरुआत सात सितंबर से हो चुकी है। पितृ पक्ष के दौरान पितरों की तिथि के अनुसार तर्पण किया जाता है और उनका मनपसंद भोजन तैयार किया जाता है, पितृ पक्ष में पितरों के रूप में कौवे को भी भोजन कराया जाता है, हिंदू धर्म में कौओं को पितरों का दर्जा दिया गया है, पितृ पक्ष हो या कोई भी शुभ कार्य पितरों (Shraddha) को याद करते हुए लोग कौओं को भोजन कराते हैं, पितृ पक्ष के दिनों में पितरों के लिए निकाले गए भोजन का अंश अगर कौआ ग्रहण कर लेता है तो पितृ तृप्त (Shraddha) हो जाते हैं। कौए के द्वारा खाया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त होता है, इसलिए पितृ पक्ष के दौरान कौवों को भोजन कराना शुभ माना जाता है।
शर्मा ने बताया कि मान्यता है कि पितरों की आत्माएं कौए के रूप में आकर अपने वंशजों से भोजन और पूजा ग्रहण करती हैं, यह मान्यता श्राद्ध और पितृ पक्ष के दौरान विशेष रूप से प्रचलित है, कौए बिना थके लंबी दूरी की यात्रा तय कर सकते हैं, ऐसे में किसी भी तरह की आत्मा कौए के शरीर में वास कर सकती है और एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकती है, इन्हीं कारणों के चलते पितृ पक्ष में कौए को भोजन कराया जाता है।

पुजारी ने बताया कि कथा के मुताबिक इंद्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौवे का रूप धारण किया था, यह कथा त्रेतायुग की है, जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया और जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारी थी, तब भगवान श्रीराम ने तिनके का बाण चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी थी, जब उसने अपने किए की माफी मांगी, तब भगवान राम ने उसे यह वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया भोजन पितरों को मिलेगा, तभी से श्राद्ध (Shraddha) में कौवों को भोजन कराने की परंपरा चली आ रही है,
यही कारण है श्राद्ध पक्ष (Shraddha) में कौवों को ही पहले भोजन कराया जाता है, ऐसा माना जाता है भविष्य में होने वाली घटनाओं का थोड़ा-थोड़ा आभास हो जाता है, कौवे को अतिथि के आगमन का संकेत भी माना जाता है। पितृ पक्ष में गाय, कुत्ता और चींटी को भी भोजन कराने से पितरों को शांति मिलती है, पितृ पक्ष में गाय को भोजन कराने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है। इसके अलावा पितृ पक्ष में कुत्ते को भोजन कराने से पितरों की आत्मा को संतुष्टि मिलती है।











